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प. पू. आ. श्रीमाणिक्यसागर सुरिभ्यो नम:

प. पू. आ. आनंदसागर सुरिभ्यो नम:

प. पू. आ. पुण्योदयसागर सुरिभ्यो नम:

पूज्य गच्छाधिपतिश्री महाराज साहेब आनंद सागर महाराज और माणिक्यसागर महाराज साहब के शिष्य पुण्योदयसागर महाराज साहब की उपस्थिति में महावीर पुरम जैन तीर्थ की स्थापना हुई है।

विश्ववती प्रकाश, त्रैलोक्य विजय श्रमण भगवान महावीर प्रभु शास्त्रीय अनुष्ठान के साथ मंदिर की गगनचुंबी धजा है और माता त्रिशला की एक खड़ी और लेटी हुई मूर्ति यह एक अनोखा देरासर है और दुनिया का पहला देरासर जहां माता त्रिशला का जिनमंदिर हैं यहाँ कुल 2 जिनालय हैं।
जिसमें निम्नलिखित देरासर हैं| एवम प्रतिमाजी है।

1.)चोमुखी प्रतिमा महावीर स्वामी,
2.) त्रिशला माता (बैठी प्रतिमा ),
3.) त्रिशला माता (लेटी प्रतिमा ),
4.) माणिभद्र,
5.) मुख्य जिनालय श्रमण भगवान श्री महावीरस्वामी.

तिथि वैशाख सूद 10 को दिनांक 18 मई 2005 को जिनालय की प्रतिष्ठा हुई थी.

अभी तीर्थ स्थल में संचालन गच्छाधिपतिश्री दोलतसागर महाराज साहेब के शिष्य श्री हर्षसागर महाराज साहब की नीश्रा मैं संचालन चल रहा है|

इस संस्थान के माध्यम से हमने दो अन्य ग्राम उपाश्रय को दत्तक लिया है | वह दो गाव बामनबोर और बेटी है |

इस स्थल कि मुख्य विशेष ता यह है कि यहां पर श्री महावीर स्वामी भगवान की माता की प्रतिमा है वह भी एक नहीं दो दो |

यहां पर मणिभद्र वीर की प्रतिमा जी को सुखडी का प्रसाद भी अर्पित कर सकते हैं| यहां पर आगलोड जैन तीर्थ की तरह सुखडी ले जाना पर कोई प्रतिबन्ध नहीं है|

यहां पर साधु साध्वी जी के वैयावच के लिए भी उत्तम व्यवस्था है| यहा पर विहार के दोरान 20 या उनसे ज्यादा ठाणे का वैयावच या देखभाल के लिए उनके लिए व्यवस्था है|

संस्थान में उत्तम भोजनशाला और उत्तम धर्मशाला की व्यवस्था भी है | धर्मशाला में हमारे पास एक कमरे में 3 लोगों के रहने की सुविधा है |

चोटिला गांव का उपाश्रय यहां से 8 किलोमीटर लंबी दूरी पर है|